Jiske Sammohan Mein Pagal Dharti Hai Aakash Bhi Hai | Adam Gondvi
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जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है | अदम गोंडवी | आरती जैन
जिसके सम्मोहन में पागल धरती है, आकाश भी है
एक पहेली-सी दुनिया ये गल्प भी है, इतिहास भी है
चिंतन के सोपान पे चढ़कर चाँद-सितारे छू आये
लेकिन मन की गहराई में माटी की बू-बास भी है
मानवमन के द्वन्द्व को आख़िर किस साँचे में ढालोगे
‘महारास’ की पृष्ठभूमि में ओशो का संन्यास भी है
इन्द्रधनुष के पुल से गुज़रकर इस बस्ती तक आए हैं
जहाँ भूख की धूप सलोनी चंचल है, बिन्दास भी है
कंकरीट के इस जंगल में फूल खिले पर गंध नहीं
स्मृतियों की घाटी में यूँ कहने को मधुमास भी है
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