गांवों में अब भी मिट्टी से प्यार, अभी भी बनाए जाते हैं माँड़ने 83 वर्षीय धापू बाई सेन ने बनाए अपने घ
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झालावाड़। गांवों में आज भी लोग अपनी मिट्टी से जुड़े हुए हैं। इन दिनों दीपावली का त्यौहार नजदीक है। ऐसे में सभी लोग अपने घर की लिपाई-पुताई में लगे हुए हैं। शहरों में एक और जहां अपने घरों में प्रिंटेड रंगोली चिपकाई जाती है। वहीं झालावाड़ जिले के सरड़ा गांव में आज भी 83 वर्षीय धापू बाई सेन हर तीज- त्यौहार पर अपने घर हड़मची और पांडू से मांडने बनाती है। और अपनी बहू ममता सेन व गीता सेन को अलग- अलग ढंग से माँड़ने बनाना सिखाती हैं। सरडा निवासी धापू बाई सेन बताती हैं कि पहले कच्चे मकान हुआ करते थे तो लोग अपने घरों में माँड़ने बनाते थे। हर तीज त्यौहार पर अलग-अलग प्रकार के मांडने बनाए जाते थे। लेकिन जब से पक्के मकान होने लगे हैं कि लोग मांडनों को भूल से गए हैं। मांडना हमारी लोक कला और लोक संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। जिनका अब धीरे-धीरे प्रचलन कम होने लगा हैं। आज की महिलाएं और युवतियां मांडना बनाने से कतराती हैं। जबकि मांडने में बनाई गई आकृतियां सामाजिक एवं धार्मिक परंपरा पर आधारित होती है जिसमें वर्षों पुराने रीति-रिवाज तथा विभिन्न पर्वों को प्रदर्शित किया जाता हैं। --- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/balbahadur-singh/message
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